बिन बगीचे के फूल के जैसे

बंजर बस्ती की धूल हूँ जैसे

बंद ज़माने से थोड़ा दूर 

बेपरवाह, बेफ़िज़ूल ।

तुझे बेवफ़ा कहने की

मेरी औक़ात न थी,

उम्मीदों को बड़ी इबादत से पाला है ज़ालिम,

उम्मीदों को मंज़ूर

बेवफ़ाई की यह सौग़ात न थी।

कश्म ए कश

शायद से लाज़िमी हो

उसको पर्दे का यह उसूल

जब से शहर में उसके

वारदातों के क़िस्से बढ़ आये हैं

सुना है मैंने

उसको चश्मे लग आये हैं

क्मज़ोर नज़र की भूल समझ

मुझमें भी कुछ इरादे जग आये हैं

ओ साक़ी रे…

क्यूँ न उड़ जाऊँ इस बहती फ़िज़ा में

क्यूँ संग रहूँ ख़ुद के मैं बंध कर सज़ा में ।

यह है दुश्वार तेरा ए ख़ुदा

कि क्यों नशे में हम नहीं

वो है सामने आज फिर अरसों बाद

फिर भी क्यूँ हैं नशे में हम नहीं

यह रात है चाहती

कि काश कुछ सुरूर हो

ग्यारह कदम उसकी खिड़की को

दस पर मुड़ जाने का ग़ुरूर हो

हैं तारे भी नराश

कि क्यूँ नशे में हम नहीं

बस थोड़ी सी ही तो लगी है प्यास

फिर भी क्यूँ नशे में हम नहीं

Touch Starvation……(2)

यूँ गुम सा, क्यूँ ख़ामोश है तूँ ?

सच हैं तूँ, या एक सोच है तूँ?

पिछले पल तो था,

अब क्यूँ लापता?

आ मेरी उँगलियों से ज़रा,

अपनी उँगलियाँ तो मिला,

अपनी साँसों से ज़रा,

मेरी धड़कन को खिला,

पलकों को झपका के,

इशारों से बता,

अपना सा बुलाके,

मुझे अपना ले बना।

I’ll be there when you fall -floor…

बंद पन्नों के दरमियाँ तेरी ख़ुशबू खोजता हूँ,

तुझे क्या मैं बताऊँ तुझे कितना सोचता हूँ,

गिरते हुए पत्तों में निकलती रूह से,

उनकी हवा संग गुफ़्तगू से,

तेरी तस्वीरों के उन रंगों में,

भूल कर भी न भुलाए जो,

तेरी आदतों और तेरे ढंगों में,

तेरी राहों का पता खोजता हूँ

तुझे क्या मैं बताऊँ तुझे कितना सोचता हूँ।

तेरे दिए उन ख़तों में

मैंने घर बसा लिया है,

आकर तो देख ज़रा,

तेरी मौजूदगी की ख्वाहिश से क्या

खूब सजा लिया है।

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